संसाधनों का उत्पादन एवं सदुपयोग
- इस मुख्य तकनीक में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लक्ष्य से नौसेना और तटरक्षक बल संगठनों के लिये परिष्कृत जहाजों को डिजाइन एवं निर्माण करना।
- वाणिज्यिक जहाजों जैसे अपतटीय आपूर्ति जहाज, समुद्री व तटीय अनुसंधान जहाज, मछली जहाज, ड्रेजर्स, टग इत्यादि का निर्माण करना।
- जहाज मरम्मत करना।
- स्वदेशी उपकरण जैसे कंप्यूटरों, रडार, संचार उपकरण, सहायक मशीनरी, इलेक्ट्रिकल फिटिंग व घरेलू उपकरण के प्रयोग को समर्थन देना।
- धीरे-धीरे आयातित उपकरण की जगह घरेलू उपकरण को प्रतिस्थापित करना।
सामाजिक उद्देश्य
- एंसिलरी के विकास के जरिये मजबूत औद्योगिक आधार बनाने में मदद करना।
- सरकार के निर्देशानुसार कंपनी में अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के व्यक्तियों कों रोजगार में प्राथमिकता देकर तथा एससी/एसटी कर्मियों को पदोन्नत करके उन्हें प्रोत्साहन देना।
- जहाँ भी आवश्यक हो प्रदूषण नियंत्रण के जरिये यह सुनिश्चित करना कि औद्योगिकीकरण के कारण पारिस्थतिकी संतुलन न बिगड़े।
- रोजगार, कल्याण, श्रमिक सहभगिता, सरकारी नीतियों के संगत व्यवसायिक नीतियाँ बनाकर लोगों में व्यापक स्तर पर सामाजिक न्याय के प्रोत्साहन के सरकार के प्रयासों को मजबूती प्रदान करना। संवाद के रूप में हिन्दी भाषा के प्रयोग को समर्थन देना।
निर्यात प्रोत्साहन एवं आयात प्रतिस्थापन
- जहाज निर्माण और मरम्मत के जरिये विदेशी विनिमय अर्जित करना।
कर्मचारी सम्बन्ध एवं कल्याण
- सामंजस्यपूर्ण औद्योगिक संबंधों से उत्पादकता में बेहतरी करना।
- कर्मचारियों में आत्मबल बढ़ाने के लिये कल्याणकारी कार्यकलापों को समर्थन देना।
- विकास कार्यक्रमों और तकनीकी प्रशिक्षण के जरिये कंपनी के कर्मचारियों के प्रबंधकीय और तकनीकी कौशल विकास को समर्थ्न देना। कंपनी की स्वयं की इकाईयों व अन्य उद्योगों में बड़ी संख्या में नये कर्मियों को शामिल करने हेतु प्रशिक्षण देना।
- सुरक्षा के सभी स्तरों पर मुख्य सुरक्षा संगठनों व प्रशिक्षकों की मदद से सुरक्षा मानकों में सुधार लाना जिससे दुर्घटना तथा कर्मियों की समय हानि को कम किया जा सके।
अनुसंधान एवं विकास तथा गुणवत्ता नियंत्रण द्वारा उत्पादकता में वृद्धि करना
- ग्राहकों के संपूर्ण संतोष और कंपनी की पहचान बनाने के लिये सख्त गुणवत्ता नियंत्रण विधियों से उच्च गुणवत्ता मानक बनाये रखना।
- व्यापक स्तर पर निरंतर अनुसंधान एवं विकास के माध्यम से आत्म-निर्भरता के लिये सतत प्रयास करना तथा व्यवहार्य डिजाइन क्षमता विकसित करना।
- विकास में वृद्धि के लिये आंतरिक वित्तीय संसाधनों का सजृन एवं अधिकतमीकरण करना और निवेश पर आय प्राप्ति को अधिकतम बनाना।
- कुल औद्योगिक आउटपुट में कंपनी की हिस्सेदारी बढ़ाना।